Dasa Mahavidya Stotram
Shakteyas, worship the goddess Parvathi in her ten different aspects.Here Dasa means ten and mahavidhya, comes from the root of Sanskrit words Maha and Vidya in which Maha means great and Vidya stands for education that results in understanding and the spread of knowledge, enlightening or nirvana.
The Ten Mahavidyas are known as Wisdom Goddess. The worshiping of Dasa Mahavidhya is also known for destroying the negative tendencies.
Kali – the Eternal Night.
Tara the – Compassionate Goddess.
Shodashi – the Goddess who is Sixteen Years Old.
Bhuvaneshvari – the Creator of the World.
Bhairavi – the Goddess of Decay.
Chinnamasta-The self-decapitated Goddess.
Dhumawati – the Goddess who widows herself.
Bagalamukhi – the Goddess who seizes the Tongue.
Matangi – the Goddess who Loves Pollution.
Kamalathmika – the Last but Not the Least.
1.Maha Kali Devi:
2.Tara Devi:
3.Chinnamastha Devi:
4.Shodasi or Laitha Maha Tripura Sundari Devi:
5.Bhuvaneswari Devi:
6.Tripura Bhairavi Devi:
7.Dhoomavathi Devi:
8.Bhagalamukhi Devi:
9.Matangi Devi:
10.Kamalathmika Devi:
Phala Sruthi of Dasa Mahavidya Stotram:
Benefits of chanting Dasa Mahavidya Stotram:
Dasa MahaVidya Stotram in Devanagari/Sanskrit/Hindi:
दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।
अर्थ:
शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।
अर्थ:
हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।
अर्थ:
हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है।
तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।
अर्थ:
तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।
अर्थ:
तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।
अर्थ:
तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।
अर्थ:
तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।
तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।
अर्थ:
हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।
अर्थ:
तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।
अर्थ:
तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।
अर्थ:
हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।
अर्थ:
मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।
अर्थ:
चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।
अर्थ:
जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।
Dasa Mahavidya Sthuthi in Telugu:
దశమహావిద్యా స్తుతి
మహా విద్యా మహా కాళి ప్రియ సఖి |
గౌరీ కౌశికి నమః విఖ్యాతే నమో స్తుతే ||1||
ముండ మాలా విభూషితే నీల రూపిణీ |
ఏకజాత నీల సరస్వతి నమః విఖ్యాతే తారా నమో స్తుతే ||2||
రుధిర పాన ప్రియే ఖండిత శిరో రూపిణీ |
రక్త కేసి ఛిన్న బాల నామ విఖ్యాతే ఛిన్నమస్త నమోస్తుతే ||3||
షోడశకళా పరిపూర్ణే ఆదిశక్తి రూపిణీ |
శ్రీ విద్యా పంచ వక్త్రనామ విఖ్యాతే షోడషీ నమోస్తుతే||4||
పాశాంకుశ దారి దుర్గమా సుర సంహారిణి |
శతాక్షి శాకంభరీ నామ విఖ్యాతే భువనేశ్వరీ నమో స్తుతే ||5||
అరుణాంబర ధారి ప్రణవరూపిణీ యోగేశ్వరి |
ఉమా నామ విఖ్యాతే త్రిపుర భైరవి నమోస్తుతే ||6||
ధుష్టా భిచార ధ్వంశిని కాకధ్వజ రధరూడే |
సుతర తర సే నామ విఖ్యాతే ధూమావతీ నమో స్తుతే ||7||
పీతాంభర ధారి శత్రుభయ నీవారిణి |
జ్వాలాముఖి వైష్ణవి నామ విఖ్యాతే బగళాముఖీ నమో స్తుతే ||8||
అర్ధచంద్రధారి కదంబ వన వాసిని |
వాగ్దేవీ సరస్వతీ నామ విఖ్యాతే మాతంగి నమోస్తుతే||9||
సువర్ణ కాంతి సుమాన్వితా మహా విష్ణు సహచారిణి |
భార్గవీ మహా లక్ష్మి నామ విఖ్యాతే కమలా నమో స్తుతే ||10||
ఫల స్తుతి:
దశమహావిద్యా స్తోత్రం సర్వశత్రు రోగ నివారణం
సర్వ సంపత్కరం పుత్ర పౌత్రాది వర్ధనమ్.
1. తొలి మహా విద్య శ్రీకాళీదేవి:
కృష్ణ వర్ణంతో ప్రకాశించే శ్రీకాళీదేవి దశమహావిద్యలలో మొదటి మహావిద్య. ఆశ్వయుజమాసం కృష్ణపక్ష అష్టమీ తిథి ఈ దేవికి ప్రీతిపాత్రమైనది. శ్రీకాళీదేవి ఉపాసన ఎంతో ఉత్కృష్టమైనదిగా శాక్రేయసంప్రదాయం చెబుతోంది. తంత్రోక్త మార్గంలో శ్రీకాళీ మహా విద్యని ఆరాధిస్తే సకల వ్యాధుల నుంచి, బాధల నుంచి విముక్తి కలుగుతుంది. అంతేకాదు శత్రు నాశనం, దీర్షాయువు, సకలలోక పూజత్వం సాధకుడికి కలుగుతుంది.
2వ మహావిద్య శ్రీతారాదేవి:
దశ మహావిద్యలలో రెండవ మహా విద్య శ్రీతారాదేవి. నీలవర్ణంతో భాసించే ఈ దేవికి చైత్రమాసం శుక్లపక్ష నవమి తిథి ప్రీతిపాత్రమైంది. శ్రీతారాదేవి వాక్కుకి అధిదేవత. ఈ దేవిని నీలసరస్వతి అని కూడా పిలుస్తారు. తారాదేవి సాధనవల్ల శత్రునాశనం, దివ్యజ్ఞానం, వాక్సిద్ధి, ఐశ్వర్యం, కష్టనివారణ సాధకుడికి లభిస్తుంది.
3వ మహా విద్య శ్రీషోడశీదేవి:
అరుణారుణ వర్ణంతో ప్రకాశించే *శ్రీషోడశీదేవి* దశమహావిద్యలలో 3వ మహావిద్యగా ప్రసిద్ధిపొందింది. పరమ శాంతి స్వరూపిణి అయిన ఈ దేవికి మార్గశిరమాస పూర్ణిమాతిథి ప్రీతిపాత్రమైనది. ఈ తల్లినే లలిత అని, రాజరాజేశ్వరి అని, మహాత్రిపురసుందరి అని అంటారు. ఎంతో మహిమాన్వితమైన ఈ మహావిద్యని ఉపాసిస్తే ఆసాధకుడికి అన్నిరకాల కష్టనష్టాలనుంచి విముక్తి మానసికశాంతి, భోగం, మోక్షం కలుగుతాయి.
4వ మహావిద్య శ్రీ భువనేశ్వరీదేవి:
మహావిద్య శ్రీ భువనేశ్వరీదేవి దశ మహావిద్యలలో 4వ మహావిద్య శ్రీ భువనేశ్వరీదేవి. ఉదయించే సూర్యుడిలాంటి కాంతితో ప్రకాశించే ఈ దేవికి భాద్రపద శుక్లపక్ష అష్టమీ తిథి ప్రీతిపాత్రమైనది. ఈ దేవి సంపూర్ణ సౌమ్యస్వరూపిణి. ఈ దేవిని ఉపాసించే సాధకుడికి మూడో కన్ను తెరుచుకుంటుంది. భూత భవిష్యత్ వర్తమానాలు తెలుసుకునే శక్తి లభిస్తుంది. అంతేకాదు, రాజ్యధికారాన్ని సమస్త సిద్దుల్ని సకల సుఖభోగాల్ని ఈదేవి అనుగ్రహంతో సాధకులు పొందవచ్చు. 5వ మహావిద్య శ్రీ త్రిపుర భైరవీ దేవి
5వ మహావిద్య శ్రీ త్రిపుర భైరవీ దేవి:
దశమహావిద్యలలో 5వ మహా విద్య వేల సూర్యుల కాంతితో ప్రకాశించే శ్రీ త్రిపుర భైరవీ దేవి. ఈ దివ్యశక్తి స్వరూపిణికి మాఘమాసం పూర్జిమాతిథి ప్రీతిపాత్రమైనది. ఆర్తత్రాణ పారాయణి అయిన ఈ మహావిద్యని ఆరాధిస్తే వివిధ సంకటాల నుంచి, బాధల నుంచి విముక్తి లభిస్తుంది. సకల సుఖభోగాలను పొందే శక్తి, సకల జనాకర్షణ, సర్వత్రా ఉత్కర్షప్రాప్తి సాధకుడికి కలుగుతుంది.
6వ మహావిద్య శ్రీ ఛిన్నమస్తాదేవి :
దశ మహావిద్యలలో 6వ మహావిద్య శ్రీ ఛిన్నమస్తాదేవి. ఈ దేవినే వజ్ర వైరోచినీ, ప్రచండ చండీ అని కూడా పిలుస్తారు. వైశాఖ మాసం శుక్లపక్ష చతుర్థి తిథి ఈ దేవికి ప్రీతిపాత్రమైంది. శాక్తేయ సంప్రదాయంలో భిన్నమస్తాదేవికీ ఎంతో ప్రశస్తివుంది. ఈ దేవిని నిష్టతో ఉపాసిస్తే సరస్వతీసిద్ధి, శత్రువిజయం, రాజ్యప్రాప్తి, పూర్వజన్మ పాపాలనుంచి విముక్తి లభిస్తుంది. అంతేకాదు, ఎటువంటి కార్యాలనైనా ఆవలీలగా సాధించే శక్తి ఈ దేవి ప్రసాదిస్తుంది.
7వ మహావిద్య శ్రీ ధూమవతీ దేవి:
దశ మహావిద్యలలో 7వ మహావిద్య.. ధూమ వర్ణంతో దర్శనమిచ్చే శ్రీ ధూమవతి దేవికి చెందింది. జ్యేష్ఠమాసం శుక్లపక్ష అష్టమీతిథి ఈ దేవికి ప్రీతిపాత్రమైంది. ఈ దేవతకి ఉచ్చాటనదేవత అని పేరు. తన ఉపాసకుల కష్టాల్ని, దరిద్రాల్ని ఉచ్చాటన చేసి అపారమైన ఐశ్వర్యాన్ని ప్రసాదిస్తుంది. ఈ ధూమవతీదేవి ఆరాధనవల్ల సాధకుడికి వివిధ వ్యాధుల నుంచి, శోకాల నుంచి విముక్తి లభిస్తుంది.
9వ మహావిద్య శ్రీ మాతంగీదేవి:
10వ మహావిద్య శ్రీ కమలాత్మికాదేవి :
పద్మాసనాసీనయై స్వర్ణకాంతులతో ప్రకాశించే శ్రీ కమలాత్మికాదేవి దశ మహావిద్యలలో 10వ మహావిద్యగా ప్రశస్తిపొందింది. సకల ఐశ్వర్య ప్రదాయిని అయిన ఈదేవికి మార్గశిరే అమావాస్యతిథి ప్రీతిపాత్రమైనది. కమలాత్మిక లక్ష్మీస్వరూపిణి అని అర్థం. శాంత స్వరూపిణి అయిన ఈ మహావిద్యని ఉపాసిస్తే సకలవిధ సంపదల్ని పుత్రపౌత్రాభివృద్ధిని, సుఖసంతోషాల్ని సాధకుడికి శ్రీ కమలాత్మికాదేవి ప్రసాదిస్తుంది.